राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को निर्णय करेगी। अदालत यह तय करेगी कि अगर इस मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा तो इसके लिए मध्यस्थकारों को नियुक्त किया जाएगा? लेकिन अयोध्या मसले पर मध्यस्थता पर माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले ही उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार अयोध्या मामले पर मध्यस्थता के खिलाफ है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ शुक्रवार को यह तय करेगी कि इस मसले का हल आपसी समझौते से निकाला जाना चाहिए या नहीं? इसके लिए विभिन्न पक्षकारों की ओर से मध्यस्थकारों के लिए नाम भी सुझाए गए हैं।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्थता पर फैसला देने पहले ही निर्मोही अखाड़े को छोड़ लगभग सभी हिंदू पक्षकार और उत्तर प्रदेश सरकार इस मामले में मध्यस्थता के खिलाफ है। राम लला विराजमान पक्ष का कहना है कि यह मामला राम जन्मभूमि से संबंधित है लिहाजा आस्था और विश्वास के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। जबकि उत्तर प्रदेश सरकार का भी यही तर्क है और अयोध्या मसले पर मध्यस्थता के खिलाफ है।
बरहाल आज सबकी निगाहें माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिक गई है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता के नामों का ऐलान में किसका नाम सुझाती है और वह विवादित स्थल के मसले को कैसे सुलझाते है।