छत्तीसगढ़ राज्य के महासमुंद ब्लाॅक के नरतोरा के मूल निवासी छः भाई-बहनो में सबसे छोटे है। जब बह बहुत छोटे थे ,तभी उनके पिता का साया उनके ऊपर से उठ गया।
पिता का साया सर से उठना जीवन की सबसे बड़ी छति के समान होती है। लेकिन ज्ञानदत्त ने अपने संघर्षो से हार नहीं मानी। साल 2003 में आईटीआई करने के बाद 2006 में वे बिजली विभाग में ऑपरेटर के पद पर नियुक्त हुए। इसके ठीक चार माह बाद यानी की 4 जुलाई ज्ञान दत्त के जीवन का कालादिन साबित हुआ। ठीक इसी दिन बिजली लाइन सुधारते समय उनके दोनों हाथ करंट की चपेट में आकर जल गए। और इसके बाद उनके दोनों हांथो को बांह से काटना पड़ा। जिससे उनकी पूरी जिंदगी पर अँधेरा छा गया , और इतना ही नहीं इसके बाद उन्हें अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा।
शिक्षक ने हिम्मत नहीं हारी ,और बन गए मिशाल शिक्षक ( teacher )
ज्ञानदत्त ने समय के साथ लड़ते हुए अपनी इच्छाशक्ति को मजबूत किया , और अपने पैरो को हथियार बनाते हुए अपने पैरों से लिखने का अभ्यास किया और शिक्षाकर्मी भर्ती के लिए टीईटी की परीक्षा दी , जिसमें सफल भी हुए। गणित संकाय के लिए उनका सिलेक्शन वर्ग 3 में हुआ। इसके बाद उनके जीवन की एक नई शुरुआत हुई और एक शिक्षक( teacher ) के रूप में उनकी नियुक्ति तेंदूकोना से पांच किमी दूर ग्राम कल्मीदादर में हुई। जंहा बह हांथो के बजाय अपने पैरो के माध्यम से लिखकर बच्चो को समझाते-पढ़ाते हैं।
शिक्षक में छुपा चित्रकार, स्कूल में ही सीखी पैर से चित्रकारी
ज्ञानदत्त शिक्षाछेत्र के अंदर अपने आप में एक मिशाल है। बतौर शिक्षक के साथ ही साथ पटेल के पास चित्रकारी का भी हुनर है। और चित्रकारी भी बह अपने पैरो से ही करते है। और चित्रकारी करना भी उन्होंने स्कूल में ही सीखा। धीरे-धीरे बह एक कुशल चित्रकार भी साबित हुए। पैरो की सहायता से ही उन्होंने महात्मा गांधी, पं. जवाहर लाल नेहरू, भगत सिंह, रानी लक्ष्मीबाई, सुभाषचंद्र बोस, बालगंगाधर तिलक, लाल बहादुर शास्त्री, चंद्रशेखर आजाद, डाॅ. भीमराव अंबेडकर जैसे कई महापुरुषों को अपने चित्र में जगह दी।
रास्ता रोकती मुश्किलें
जीवन में इतना संघर्ष करने के बाबजूद मुश्किलें उनका रास्ता रोकती ही रहती है। हाँथ न होने की बजह से शिक्षक ज्ञानदत्त पटेल को स्कूल आने-जानेमें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उनके गांव गांव नरतोरा से स्कूल की दूरी करीब 7 किमी है। ऐसे में घर से स्कूल तक जाने के लिए उनको प्रतिदिन रोड पर खड़े होकर लिफ्ट के लिए किसी का इन्तजार करना पड़ता है। और इन सबके इतर लाने ले जाने के लिए बाइक चालक को प्रतिमाह 2000 से 3000 रुपए देना पड़ता है।
शिक्षक दिवस के इस खास मौके पर सभी पाठको को शिक्षक दिवस (teachers day ) की हार्दिक सुभकामनाएँ। उम्मीद करते है की आपको एक शिक्षक के संघर्ष की विशेष कहानी अवश्य पसंद आयी होगी। आपसे निवेदन है की इस संघर्ष की कहानी को लाइक करे ,और अपने विचारो को कमेंट में हमे जरूर बताये , और अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे। धन्यवाद।