मन कुछ ठान लिया जाए तो इंसान क्या नहीं कर सकता है. सफलताओं की गाथा जिनके लिखी जाती उसके पीछे उनकी कड़ी मेहनत और परेशानियां भी छिपी होती हैं. लेकिन इतिहास वही रचते हैं जो लोग बिना हिम्मत हारे संघर्ष करते हैं. चलिए हम आपको एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताएंगे जिन्होंने कड़ी मेहनत और लग्न से एक अच्छा मुकाम हासिल किया है.
आपको बता दें महाराष्ट्र के धुले जिला में जन्मे राजेंद्र भारुड बहुत ही गरीब और सामान्य परिवार से आते हैं. उन्होंने अपने सफलता की कहानी बताते हुए कहा कि जब वह अपनी मां के पेट में थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था. ऐसे में लोगों ने उनकी माँ से कहा कि वह अपना गर्भपात करा दें. लेकिन राजेंद्र की मान अपने बच्चे को जन्म देने का फैसला किया. राजेन्द्र के एक बड़े भाई और एक बहन भी हैं. राजेंद्र ने अपने संघर्ष के बारे में विस्तार से बताया है. उन्होंने कहा उनके लिए यह सफर तय करना बिलकुल आसान नहीं था.
दूध की जगह शराब पीकर बड़े हुए राजेंद्र
आपको बता दें राजेंद्र जब 2 साल के थे तब उनकी मां देसी शराब बेचा करती थी. घर की परिस्थिति इतनी खराब थी कि दूध तक खरीदने के पैसे नहीं थे. जब राजेंद्र रोते थे तो उनकी दादी उन्हें दूध की बजाए दो-तीन चम्मच शराब ही पिला देती थी. कई बार तो राजेंद्र भूखे पेट ही रात को सो जाया करते थे. वह पढ़ने लिखने में बहुत होशियार थे, इसीलिए राजेंद्र की मां ने सोचा कि बेटे को डॉक्टर या तो इंजीनियर ही बनाऊंगी. राजेंद्र अपनी मां के उसी सपने को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत और लगन से पढ़ाई किया करते थे.
कलेक्टर बनकर मां के सपने को किया पूरा
दसवीं में राजेंद्र को 95% और 12वीं में 90% गुण प्राप्त हुए जिसे देखकर राजेंद्र की स्कूल में और पड़ोस के लोगों ने भी बहुत प्रशंसा की थी . इसके बाद वह मेडिकल की पढ़ाई करने मुंबई के सेठ जीएस कॉलेज आ गए. संयोग से राजेंद्र ने आगे चलकर सिविल सर्विसेज एग्जामिनेशन का रुख किया और आईएएस की तैयारी में जुट गए.
गांव वाले अफसर के रूप में राजेंद्र को देखकर चौंक गए
राजेंद्र ने बताया कि बचपन में उनके पास किताबें खरीदने के तक पैसे नहीं होते थे. इसलिए जो लोग शराब पीने आते थे वह उनके काम कर देते थे. जिसके बाद शराब पीने आए लोग उनको टिप के तौर पर पैसे देते थे. उन्ही पैसो को इकठ्ठा करके राजेंद्र अपने लिए किताबें खरीदते थे. इसी तरह से राजेंद्र ने मेहनत करके पढ़ाई की. सिविल सर्विसेज एग्जाम की तैयारी करते समय भी राजेंद्र को कई सारी दिक्कतों का सामन करना पड़ा. लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. आखिरी में उन्होंने अपना मुकाम हासिल कर लिया और राजेंद्र कलेक्टर बन गए.
मां के आंसू थमने का नहीं ले रहे थे नाम
कलेक्टर बनने के बाद जब राजेंद्र घर आए तो गाँव वाले ख़ुशी से झूम उठे. वहीँ जब इसके बारे में उनकी मां को पता चला तो उनके आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. वह इतनी खुश थीं कि अपने बेटे को प्यार से चूमने लगीं.