अयोध्या के बाद काशी में हुई धर्म संसद में राम मंदिर मुद्दा छाया रहा। साधु-संतों ने बिना नाम लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर हमला करते हुए यूपी सरकार के उस फैसले का विरोध किया जिसमें कहा गया है कि अयोध्या में 221 मीटर ऊंची प्रतिमा लगेगी। भगवान श्रीराम का स्टैचू लगाने का न सिर्फ जबरदस्त विरोध हुआ बल्कि इस लेकर निंदा प्रस्ताव भी पारित किया गया। धर्म संसद में कहा गया कि भगवान श्रीराम आराध्य हैं। उनकी मूर्ति लगाने का फैसला आस्था के खिलाफ है। धर्म संसद में दो टूक कहा गया कि अयोध्या में मंदिर चाहिए, प्रतिमा मंजूर नहीं है। बताया जा रहा है कि इस मुद्दे पर बुधवार को शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ‘धर्मादेश’ जारी करने वाले है।
धर्म संसद के दूसरे दिन की कार्यवाही शुरू होते ही राम मंदिर के साथ धर्मांतरण, वैदिक शिक्षा और गंगा सरंक्षण के मुद्दे उठे। अयोध्या से आए रसिक पीठाधीश्वर महंत जनमेजय शरण ने कहा, भगवान श्रीराम को भी देश के सामान्य लोगों की तरह दशकों से न्याय का इंतजार करना पड़े, इससे दुखद और क्या हो सकता है? सनातनियों को शंकाराचार्यो की अगुआई में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए अब आगे आना होगा। धर्माचार्य अजय गौतम ने कहा, ‘रामलला टेंट में हैं और उनके छद्म भक्त लाखों का सूट-बूट पहन कर घूम रहे हैं। बीजेपी अयोध्या में आदर्श राम का मंदिर बनानी चाहती है जबकि संत समाज और सनातनी हिंदू घट-घट व्यापी राम मंदिर बनवाने के प्रतिबद्ध हैं।’
उत्तराखंड के हेमंत ध्यानी ने कहा कि धर्म से खिलवाड़ प्रकृति भी सहन नहीं कर पाती है। वरिष्ठ साहित्यकार अजीत वर्मा ने कहा कि रामजन्म भूमि शास्त्रों से जुड़ा विषय है लेकिन राजनीतिक स्वार्थवश इस मसले में खिलवाड़ हो रहा है। राम मंदिर पर दिनभर चली बहस के बाद जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने यूपी सरकार द्वारा अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति स्थापित करने को रामभक्तों के साथ बेईमानी बताया। इसको लेकर निंदा प्रस्ताव रखा जिसका सभी ने समर्थन किया। प्रवर धर्माधीश स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि धर्म संसद के आयोजन का उद्देश्य किसी अन्य धर्म का अपमान करना नहीं है।