डिया टाइम्स के मुताबिक, खेल कोटे से सरकारी नौकरी के लिए जुही बीते कई सालों से संघर्ष कर रही हैं। बात है 2018 की। तत्कालीन खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने जूही झा को MP के सबसे ऊंचे खेल सम्मान विक्रम अवॉर्ड से नवाजा था। पर अब इन दिनों उसी जूही की हालत ये है कि वो इंदौर में बाणगंगा के एक झोपड़े में पिता सुबोध कुमार झा और मां रानी देवी के साथ रह रही हैं।
सरकारी दफ्तरों के चक्कर- घर की आर्थिक हालत काफी खराब है। जूही पिछले दो साल से नौकरी के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं। सरकारी नियम के तहत तो विक्रम पुरस्कार विजेताओं को शासकीय नौकरी मिलती है। पर जूही को अभी तक ये नौकरी नहीं मिली।
सुलभ शौचालय से एशियन गेम्स में खोखो में स्वर्ण पदक! 3 साल पहले जूही झा को मप्र का सर्वोच्च खेल सम्मान विक्रम अवॉर्ड मिला तो परिवार के पास इंदौर से भोपाल आने के पैसे नहीं थे, अब दो साल से सरकारी नौकरी का संघर्ष है @ndtvindia @ChouhanShivraj @yashodhararaje @anandmahindra pic.twitter.com/NGay0jjUnU
— Anurag Dwary (@Anurag_Dwary) September 4, 2020
12 वर्ष सुलभ शौचालय में रही हैं- दरअसल, जूही के पिता सुबोध कुमार झा शहर के नगर निगम में नौकरी करते थे। एक सुलभ शौचालय उनके हिस्से था। इसके भीतर ही एक कमरा था जहां उनका पांच लोगों का परिवार रहता था। जूही ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया था कि उनके परिवार ने बहुत बुरे दिन देखे हैं। जुही 2016 में एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था।
उम्मीद थी कि कुछ होगा- जूही आगे कहती हैं, ‘मुझे ये उम्मीद थी कि नए पुरस्कारों की घोषणा के साथ पुराने पुरस्कार प्राप्त खिलाड़ियों के लिए भी नौकरी की घोषणा होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।’ खेल मंत्रालय में संयुक्त संचालक डॉ. विनोद प्रधान ने कहा, ‘मेरी जानकारी में ये बात आई है। विक्रम पुरस्कार के बाद उत्कृष्ट घोषित करने की प्रक्रिया वल्लभ भवन में होती है। हर विभाग से जानकारी एकत्र की जाती है। वो बताते हैं कि कितनी वैकैंसी उनके विभाग में हैं।