मकर सक्रांति के दिन चूड़ा, दही, तिलकुट ,दूध खाने के लिए नहीं बल्कि इस वजह से लोग मकर सक्रांति मनाते हैं..

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ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है| सूर्य के एक राशि से दूसरी में प्रवेश करने को संक्रांति कहते हैं| मकर संक्रांति में ‘मकर’ शब्द मकर राशि को इंगित करता है, जबकि ‘संक्रांति’ का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है| चूंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इस समय को ‘मकर संक्रांति’ कहा जाता है| मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहा जाता है| इस दिन गंगा स्नान कर व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है|

जब सूर्यदेव अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करते है, तब उसे ‘मकर संक्रांति’ कहा जाता है। जब सूर्य की गति उत्तरायण होती है, तो कहा जाता है कि उस समय से सूर्य की किरणों से अमृत की बरसात होने लगती है। इस वर्ष इसे 15 जनवरी को मनाया जाएगा। मान्यता है, कि इस दिन गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान करने आते है। इसलिए इस अवसर पर गंगा स्नान व दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस त्यौहार का निर्धारण सूर्य की गति के अनुसार होता है और सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने के कारण यह पर्व ‘मकर संक्रांति’ व ‘देवदान पर्व’ के नाम से जाना जाता है।

मकर संक्रांति क्यों मनाते है 

मकर संक्रांति का पर्व पौष मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण (उत्तर की और चलना) हो जाता है। शास्त्रों में उत्तारायण की अवधि को देवी-देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात के रूप में माना गया है। मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, तप, जप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है। शास्त्रों के अनुसार इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रांति के दिन घी और कंबल के दान का भी विशेष महत्व है। इस त्योहार का संबंध केवल धर्मिक ही नहीं बल्कि इसका संबंध ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। इस दिन से दिन एंव रात दोनों बराबर होते है।

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