अंग्रेजी कमजोर होने के कारण कालेज में बना मजाक, नहीं मानी हार, हिंदी से की तैयारी और बन गए आईपीएस

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अंग्रेजी कमजोर होने के कारण कालेज में बना मजाक .. अक्सर अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को अधिक प्रतिभावान समझा जाता है। उनको हर जगह तव्वजों दी जाती है। जबकि हिंदी बोलने वालो का मजाक बनाया जाता है। ऐसे ही मजाक का शिकार आईएएस निकेतन बंसीलाल भी बने थे। मजाक का शिकार बनने के बाद भी बंसीलाल आहत नहीं हुए। उन्होंने अपनी कमजोरी समझी जाने वाली हिंदी को ही हथियार बनाया। इसके बाद आईपीएस अफसर भी बने।

बंसी ने मराठी मीडियम से की शुरूआत
निकेतन बंसीलाल ने अपनी शिक्षा की शुरुआत मराठी मीडियम से की। उनकी अंग्रेजी कमजोर थी। जिसके कारण उनका कालेज में कई बार शिकार बनाया गया। बंसी की हिंदी काफी अच्छी थी। लेकिन कालेज में हिंदी बोलने वाले कमजोर समझा जाता था। बंसी ने अपनी इसी कमजोरी को प्रमुख हथियार बनाया। उन्होंने यूपीएससी में जाने का मन बनाया। पहले दो बार असफलता हाथ लगी। लेकिन तीसरी बार उन्होंने मंजिल को हासिल कर लिया।

आर्थिक तंगी में गुजरा था बचपन

बंसीलाल बताते है कि उनका पूरा बचपन आर्थिक तंगी में ही गुजरा था। उनके पिता किसान थे। परिवार की आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी। उनकी शुरुआती शिक्षा मराठी मीडियम से हुई थी। इसके बाद डिप्लोमा और बीटेक करने के लिए कालेज में दाखिला लिया। कालेज में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने सिविल सर्विस में जाने का मन बनाया। हालांकि परिवार की स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण उन्होंने एक कंपनी में नौकरी भी की। इस दौरान सिविल सर्विस की तैयारी भी जारी रखी।
असफल होने के बाद न हो निराश

सिविल सर्विसकी तैयारी को लेकर वह नौकरी छोडक़र दिल्ली गए। वह दिल्ली में ही रहकर पढ़ाई करने लगे। पहली और दूसरे प्रयास में उन्हें असफलता हाथ लग। लेकिन वह बिल्कुल भी निराश नहीं हुए। उन्होंने मेहनत करते हुए अपने प्रयास जारी रखे। तीसरे प्रयास में बंसीलाल को सफलता मिल गई। खास बात रही कि तीनों प्री परीक्षा में उनके १२० नंबर से अधिक आए।

बिल्कुल जीरों से करे अपनी तैयारी की शुरूआत

निकेतन कहते है कि अपनी तैयारियों की शुरुआत बिल्कुल जीरो से करे। जो छात्र यह सोचकर आते है कि वह पढ़ाई में अधिक होशियार है। उन्हें सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। वह कहते है कि प्री और मेंस दोनों की तैयारी एक साथ करे। अगर सफल होना चाहते है कि ईमानदारी से रणनीति बनाए। वहीं टेस्ट देने को लेकर ज्यादा हड़बड़ी न दिखाए। टेस्ट देना अच्छी बात है। लेकिन बहुत ज्यादा टेस्ट देने से कंफ्यूजन की स्थिति बन जाती है। केवल अपने लक्ष्य पर फोकस रखे।

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