अफगानिस्तान के पास सस्ता पेट्रोल था, सस्ता डीजल था और सस्ती प्याज भी थी, लेकिन नरेन्द्र मोदी जैसा नेता नहीं था

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अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो चुका है। राष्ट्रपति अशरफ गनी समेत कई शीर्ष नेता अफगानिस्तान छोड़कर चले गए हैं। देश में हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। एयरपोर्ट से लेकर बाकी जगहों पर लोग वहां से भागते हुए दिख रहे हैं। लोगों का पलायन शुरू हो चुका है। लोग अपनी जान की सुरक्षा के लिए देश छोड़कर जा रहे हैं। लोगों को तालिबान का खौफ सता रहा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर अफगानिस्तान छोड़कर लोग क्यों जा रहे हैं, जबकि वहां पेट्रोल, डीजल और प्याज़ काफी सस्ता है ?

भारत की तुलना में अफगानिस्तान में सस्ता पेट्रोल,डीजल और प्याज

आज यानि 09 अगस्त, 2021 को अफगानिस्तान और भारत में पेट्रोल, डीजल और प्याज की कीमत की तुलना करें, तो पायेंगे कि वहां भारत की तुलना में पेट्रोल, डीजल और प्याज काफी सस्ता है। जहां अफगानिस्तान में पेट्रोल की कीमत 57.81 रुपये प्रति लीटर है, वहीं भारत में 101.84 रुपये प्रति लीटर है। अफगानिस्तान में डीजल की कीमत 48.63 रुपये प्रति लीटर और भारत में 89.87 रुपये प्रति लीटर है। इसी तरह अफगानिस्तान में प्याज की कीमत 20 रुपये प्रति किलो और भारत में 30-40 रुपये प्रति किलो है।

सस्ती चीजें छोड़कर, सुरक्षा और शांति के लिए पलायन

अब सवाल उठता है कि क्या सस्ते पेट्रोल, डीजल और प्याज ही शासन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है या सुरक्षा और शांति ? जो लोग शांति, सुरक्षा और आजादी चाहते हैं, वो अफगानिस्तान छोड़कर जा रहे हैं। लोग इस भय को लेकर देश छोड़कर जाना चाहते हैं कि तालिबान उस क्रूर शासन को फिर से लागू कर सकता है, जिसमें महिलाओं के अधिकार खत्म हो जाएंगे। वे अफगानिस्तान से ज्यादा दूसरे देशों को अपने लिए बेहतर समझते हैं। जो लोग वहां पर मौजूद हैं, वो अपनी जान जोखिम में डालकर रहने को मजबूर हैं। वे तालिबानी शासन में विभिन्न पाबंदियों के साये में गुलाम बनकर रहने को विवश होंगे। वे सस्ते पेट्रोल, डीजल और प्याज का उपभोग तो कर सकते हैं, लेकिन खुली हवा में सांस नहीं ले सकते हैं। महिलाओं को बुर्के में और मर्दों को विभिन्न पाबंदियों के बीच रहना होगा।

अफगानिस्तान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे नेतृत्व की कमी

अब सवाल उठते हैं कि ऐसे हालात क्यों पैदा हुए ? इस सवाल का सबसे उचित जवाब यह है कि वहां पर नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधनामंत्री नहीं है, जो उनकी हिफाजत कर सके। उनके लिए लड़ सके और लोगों में सुरक्षा की भावना जगा सके। अफगानिस्तान में 20 सालों तक अमेरिकी सेना रही। उसने अफगानिस्तानी सेना को हथियारों के साथ ही प्रशिक्षण भी दिया, लेकिन अमेरिकी सेना के जाते ही तालिबानियों ने जिस तरह अफगानी सेना को पराजीत किया, वो हैरान करने वाला है। ऐसे में सावल उठता है कि आखिर इतने कम समय में अफगानिस्तान की सेना ने अपने हाथ क्यों खड़े कर दिए ? इसका जवाब यह है कि अफगानिस्तान ने प्रधानमंत्री मोदी जैसा नेतृत्व पैदा करने में असफल रहा है, जो तालिबानी चुनौतियों का डटकर मुकाबला कर सके।

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