बेटी को पालने के लिए 36 साल तक एक औरत को पुरुष बनकर रहना पड़ा

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वो पिच्चर याद है, ‘मेरा नाम जोकर’? उसमें एक किरदार था, पदमिनी का. मीनू मास्टर. राजू (राज कपूर) का दोस्त, जो उसके साथ सर्कस के स्टंट्स करता था. फ़िल्म के क्लाइमैक्स सीक्वेंस से ठीक पहले ये पता चलता है कि ये मीनू मास्टर असल में मीना थी.

ये बात राजू को पता चलती है और वो रूठ जाते हैं. ‘मैं कुछ भी बर्दाश्त कर सकता हूं, झूठ नहीं’ टाइप डायलॉग मारते हैं. इसके बाद मीनू मास्टर अर्थात मीना कहती है,

“हां, झूठ था. मगर इस झूठ के ज़िम्मेदार तुम थे. तुम नहीं तो तुम्हारी मर्द ज़ात. मैं बंबई आई थी, कितनी आशाएं लेकर. सोचती थी फ़िल्मों में काम करूंगी, बड़ी आर्टिस्ट बनूंगी, फ़िल्मकार कहलाऊंगी, लेकिन अकेली लड़की के लिए इस शहर में इज़्ज़त से रहना बहुत मुश्किल है. बहुत मुश्किल है राजू.

/>जिसने देखा, बुरी नज़र से देखा. सो, मैंने फ़ैसला किया की अपनी लाज बचाने के लिए मुझे मरना पड़ेगा. लंबे बालों वाली मीना मर गई और उसकी जगह एक आवारा चा’कू चलाने वाले छोकरे मीनू मास्टर ने ले ली.”

आज ये डायलॉग क्यों? क्योंकि ऐसी ही एक कहानी तमिलनाडु से आई है. फ़िल्म से नहीं, असली कहानी. तमिलनाडु के थूथुकुडी की एक 57 साल की महिला पिछले 36 साल से पुरुष बन कर रह रही हैं. अपनी बेटी के लिए.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़, महिला कट्टुनायकनपट्टी गांव की रहने वाली है. नाम पेटीअम्मल. पति शिवा की शादी के 15 दिन बाद ही मौ’त हो गई. तब पेटीअम्मल 20 साल की थी और उसने एक बेटी को जन्म दिया. अब अपने और अपनी बेटी के पालन-पोषण का भार उस पर ही था.

उसने छोटे-छोटे काम करना शुरू किए. कन्सट्रक्शन साइट्स, होटलों और चाय की दुकानों में काम किया. न्यू इंडियन एक्सप्रेस को पेटीअम्मल ने बताया, “मैं जहां भी काम करने जाती, वहां पुरुषों का वर्चस्व होता था. कई जगह तानों और उत्पी’ड़न का सामना करना पड़ा. महीनों तक यौ”न उत्पी”ड़न और कठिनाई का सामना करने के बाद, मैं एक दिन तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर गई और मैंने एक ‘आदमी’ बनने का फैसला कर लिया. अपनी पोशाक को एक शर्ट और लुंगी में बदल दिया और नाम मुथु रख दिया. उसी दिन ये भी फैसला किया कि दोबारा शादी नहीं करूंगी.”

उसके बाद वो 36 साल तक पुरुष के वेश में रही. पेटीअम्मल ने बताया कि केवल उनके एक करीबी रिश्तेदार और उनकी बेटी को पता था कि वो एक महिला हैं. पेटीअम्मल की बेटी शनमुगसुंदरी अब शादीशुदा हैं और परिवार आर्थिक रूप से ठीक है, लेकिन पेटीअम्मल अभी अपना पहनावा या पहचान बदलने को तैयार नहीं हैं. कहती हैं, “इस पहचान ने मेरी बेटी के लिए एक सुरक्षित जीवन सुनिश्चित किया है. मैं मरते दम तक मुथु ही रहूंगी.” पेटीअम्मल को हाल ही में एक महिला के तौर पर मनरेगा जॉब कार्ड मिला है. हालांकि, उनके आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर ID के अनुसार, वो अभी भी एक पुरुष हैं.

पेटीअम्मल ने सरकार से आर्थिक सहायता मांगी है. उन्होंने कहा, “मेरे पास न तो घर है और न ही मेरे पास कोई बचत है. मैं विधवा प्रमाण पत्र के लिए भी आवेदन नहीं कर सकती. चूंकि मैं काम करने के लिए बहुत बूढ़ी हूं, इसलिए मैं सरकार से कुछ आर्थिक सहायता देने का अनुरोध करती हूं.” शहर के कलेक्टर डॉ के सेंथिल राज ने कहा कि वह जांच करेंगे कि क्या किसी सामाजिक कल्याण योजना के तहत पेटीअम्मल को लाभ दिया जा सकता है.

अब ये तो हुई खबर. आपको पता है भारतीय टीम की स्टार बैटर शेफाली वर्मा को भी क्रिकेट खेलने के लिए लड़के का भेस धरना पड़ता था. शेफाली पांच साल की थीं, तब से ही क्रिकेट खेल रही हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने खुद के लड़का बनकर खेलने की बात बताई थी.

शेफाली के पिता संजीव वर्मा. पेशे से सुनार हैं. रोहतक में रहते हैं. क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन सपना अधूरा रह गया. इसलिए अपने बच्चों साहिल और शेफाली को क्रिकेट सिखाने लगे. सुबह-सुबह अपनी बाइक में दोनों बच्चों को बिठाते और निकल पड़ते खाली मैदान, पार्क, सड़क या पार्किंग एरिया खोजने. ताकि बच्चों को वहां क्रिकेट खिला सकें. लोग टोकते, कहते कि लड़की को क्रिकेट? सवालों की झड़ी लगा देते. इसलिए संजीव ने बेटी के बाल बॉय कट करवा दिए. ताकि कोई पहचान न सके कि लड़का है या लड़की. और, बिना रोक-टोक वो क्रिकेट खेल सके. आज शेफाली वर्मा भारतीय टीम की वन-ऑफ़-द-बेस्ट-ऐसेट्स हैं, लेकिन उनकी जर्नी ऐसी क्यों है? पेटीअम्मल की कहानी ऐसी क्यों है? क्योंकि आज भी कई स्पेस औरतों के स्पेस नहीं माने जाते हैं, कई स्पेस लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं हैं.

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